Wednesday, October 14, 2020

आज भी कहानी कहीं अकेली सी है......

*आज भी सबकी कहानी, कहीं अकेली सी है .....* 

कहीं माता की लोरी , कहीं बच्चो की बोली सी है,
कभी सखी की बाते , कभी नटखट शर्मीली सी है,
कबीलों के बीच में बसती, एक उजड़ी हवेली सी है,
पूरी तो नहीं, बस उलझी अधूरी सी है ।।

वो कहानी कहती तो है , पर ऐसा लगता है  बताती कुछ नहीं ,
मुझे तो लगता है मीठी ,पर पूरी जलेबी सी है ।।

मुझसे मिलती नहीं , पर हक जताती है ,
थोड़ी सी ज़िद्दी , फिर भी रूठी सजावट सी है ।।
चूल्हे पर जलती कड़ाई पर लगी काहि सी है ,
या यूं कहूं , वो थाली में परोसी भूख सी है ।।

कभी सबकी खुशी , तो अपनों में पराई सी है ,
कुछ ऐसी जो उसकी काली परछाई सी है ,
दिखने में अच्छी , पर कड़वी दवाई सी है ।।

सब साफ़ है , फिर भी कुछ नहीं दिखता
कुछ ऐसी सफ़ाई सी है ,
ये कभी दूर तो कभी पास हुई विदाई सी है ।।

आज भी सबकी कहानी, कहीं अकेली सी है .....


Saturday, April 25, 2020

क्या, बूढ़ा हो गया हूं मैं.... ?

जाड़ों में सर्दी अब ज्यादा लगने लगी है ,
मेरी पास की नज़र भी अब थकने लगी है 
मेरे सर के बालों का रंग भी बदलने लगा है 
ना जाने किसके प्यार में टूट कर बिखरने लगा है ।

अब मेरा चांद नग्न आंखो से साफ नज़र नहीं आता
यही पास में रखा उसका मकान नज़र नहीं आता 
हवाओं को मेरी नाक से अब ज्यदा टकराना पड़ता है 
इन सांसों को भी अब खुलकर इनसे गुजरना नहीं आता

बातो को अब बहुत सोच कर बोलने लगा हूं 
हर वजह पर इन लब्बों को अब चलाना नहीं आता 
वो पूछते है मुझसे आज भी मेरी हर फरमाइश 
पर इन दांतो को अब वो मसलना नहीं आता 

अब मुड़ मुड़ के उस देखने की आदत कम हो रही है 
गर्दन को हसीन मुद्दों से अब वो मिलना नहीं आता 
हर चोट सहन कर रखी है अपने मजबूत सीने पर 
पर अब इस सीने को , वो हर चोट सेहना नहीं आता 

यूं तो , मेरे हाथो ने अब दिमाग का साथ छोड़ दिया है 
तुम्हे कैसे बताऊं इन्होंने खुद को चलाना छोड़ दिया है 
हाथो की दस उंगलिओं को मै हर वक़्त गीन लेता हूं 
पर , मुझे मिले पानी का गिलास अक्सर छोड़ देता हूं 

दौड़कर अब सबको हराना नहीं आता 
हां अब मुझे तितली पकड़ना नहीं आता 
उसकी खिड़की से उतर अब मैं घर नहीं आता 
सच कहूं, पैरों को अब बिस्तर से उतरना नहीं आता 

राहों पर अब लोगो से मिलना हो नहीं पाता 
क्या करू मुझसे अब कहीं निकला नहीं जाता
वो सब कहने लगे है कि बूढ़ा हो गया हूं मैं 
तुम्हीं बताओ ,मुझे तो उनसे कुछ कहा नहीं जाता 

क्या , बूढ़ा हो गया हूं मैं ? 


Thursday, April 23, 2020

दोषी कौन हैं...

सुबह के सूरज के साथ ही , आरज़ू अपने घर के काम में जुट जाती है । और पास के गांव में रहने वाला राजू भी अपना बस्ता लीये स्कूल की ओर, दोस्तो के साथ निकल पड़ता है । आरज़ू और राजू का स्कूल एक ही है , और इस वर्ष दोनों का ही स्कूल में आखिरी बरस है । 

इसके बाद दोनों ही , विश्वविधालय का रुख करेंगे , ये सोच राजू और आरज़ू बहुत ही खुश है । 
आरज़ू अपने घर का कार्य खत्म कर के ही , स्कूल जाती है क्युकी उसके घर में कोई और नहीं है जो उसका काम में हाथ बटा सके । आरज़ू के मां की तबियत ठीक नहीं रहती और पिता जी सुबह होते ही , खेत की और निकल जाते है । 
आरज़ू अपने परिवार की एक अकेली लड़की है  , उसका रंग सांवला है ,और बहुत ही ज्यादा शर्मीली  है , लेकिन इसके साथ साथ वह बहुत मेहनती और पढ़ाई में भी अच्छी है । आरज़ू अपने निर्मल स्वभाव से और अच्छे विचारो से गांव की एक आदर्श लकड़ी है ।
जिसपर स्कूल और गांव वाले भी बहुत नाज़ करते है ।

अब स्कूल का आखिरी बरस है , तो सभी विद्यार्थी काफी मेहनत से अपनी पढ़ाई कर रहे है , और स्कूल के बच्चो की लगन को देखते हुए , स्कूल के प्रधानाचार्य ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया है , जिसको शहर का एक नामी कॉलेज आयोजित करेगा ।  और प्रतियोगिता जीतने वाले , विद्यार्थी को उस नामी कॉलेज में एडमिश मिल जाएगा और इसके साथ साथ कॉलेज उसके पूरे शिक्षा पर खर्च भी करेगा ।

इस प्रतियोगता के लिए स्कूल विद्यार्थियों को एक महीने का वक्त देता है तैयारी के लिए। 
राजू जोकि प्रधानाचार्य का बेटा है , पढ़ाई में अच्छा है लेकिन आरज़ू की अपेक्षा उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं है । जोकि प्रधानाचार्य जी को पसंद नहीं है।
राजू के पिता उसको इस प्रतियगिता का महत्व समझाते है और राजू को मेहनत करके ये प्रतियोगिता जीतने के लिए कहते है ।

इधर आरज़ू को स्कूल के अध्यापक समझते है और इस अवसर को जीतने के लिए प्रेरित करते है । 
आरज़ू भी अपनी पूरी मेहनत में लग जाती है और पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने लगती है ।
और राजू के साथ साथ स्कूल के सभी विद्यार्थी मेहनत करने में लग जाते है । आखिर उस नाम चीन कॉलेज में सभी को एडमिशन लेना था । 

प्रतियोगिता के सात दिन पहले , कॉलेज अपने अध्यापकों की एक टीम इस प्रतियोगीता की जांच के लिए भेजता है । जिसमे एक अध्यापक रमेश, जोकि काफी युवा हैं और खूबसूरत भी । 

स्कूल में विद्यार्थियों को चार भाग में बांट दिया जाता है । 
जिसमे से एक भाग , अध्यापक रमेश को मिलता है , और अध्यापक रमेश के भाग में आरज़ू और राजू भी शामिल है । विद्यर्थियों को चार भाग में बाटने के बाद , चार भागों में बटे विद्यार्थियों का , Practice Test  लिया जाता है । जोकि उनकी तैयारी और बुद्धि को जानने के लिए किया जाता है । 

इस Practice Test में सिर्फ आरज़ू ही सारे प्रश्नों का सही सही उत्तर देती है । जबकि राजू अपने पिता के दवाब में आकर अच्छा प्रदर्शन नहीं  देता है । 

आरज़ू का Test Paper , Check करने के बाद , अध्यापक रमेश , आरज़ू से बहुत प्रभावित हो जाते है , और अन्य विद्यार्थियों से आरज़ू के बारे में पूछने लगते है । 
इधर राजू का Practice Test में बेकार परिणाम देखने के बाद , उसके पिता उसपर बहुत नाराज़ होते है और पढ़ाई का बहुत ज्यादा दबाव बनाते है । 

अध्यापक रमेश जो की युवा थे और सुन्दर भी तो स्कूल की लड़कियां उनको पसंद करने लगी थी , और उनका आरज़ू के बारे में जानकारी लेना , उसके बारे में पूछना ये  सब स्कूल की लड़कियों ने अलग तरीके के लिया था और आरज़ू को कुछ इस तरह से बताया , मानो अध्यापक रमेश ,आरज़ू की चाहने लगे है । 

अब क्युकी अध्यापक रमेश ज्यादा उमर के नहीं है और बेहद खूबसूरत भी है , तो आरज़ू को ये बाते सुनकर अच्छा लगता है और आरज़ू को लगने लगता है कि सच में अध्यापक रमेश उसको चाहने लगे है । और आरज़ू जाने अंजाने अध्यापक रमेश को चाहने लगती है , और ज्याातर समय अध्यापक रमेश के बारे में ही सोचने लगती है ।

इस वजह से आरज़ू का ध्यान ,पढ़ाई से हट जाता है और वह काल्पनिक दुनिया में जीने लगती है ।
इधर राजू को पढ़ाई में ध्यान लगाना मुश्किल हो रहा है क्युकी उसके दिमाग़ में उसके पिता के तीखे स्वर गुजते रहते थे ।

प्रतियोगिता का दिन ...

आज आरज़ू के पिताजी खेत पर नहीं गए है , क्युकी आज वह अपनी बेटी के साथ स्कूल आए है , और रास्ते में उसको अपने सपनों के बारे में बताते हुए आए है , जो आरज़ू के पिता ने आरज़ू के साथ देखे है । 
क्युकी वो जानते है कि अगर आरज़ू का एडमिशन इस नामी कॉलेज में हो जाएगा तो उनके और आरज़ू के सारे सपने पूरे हो जाएंगे ।

इधर राजू भी ,अपना बस्ता उठाए स्कूल की तरफ निकल लिया है , लेकिन आज वह अपने दोस्तो के साथ स्कूल नहीं आ रहा है । राजू स्कूल के दरवाजे तक आकर लौट जाता है , क्युकी उसको पता था कि वह यह प्रतियगिता जीत नहीं पाएगा और उसके पिता जी उस पर फिर नाराज़ होंगे । राजू खुद से हार मान चुका था । और इसी वजह से वह लौटते वक़्त अपने घर का पता भी भूल गया था । 

स्कूल में आरज़ू के पिता बहुत उम्मीद से , स्कूल के गेट पर आपनी बेटी आरज़ू का इंतज़ार कर रहे थे कि वह अपने बेटी से पूछ सके कि उसका इम्तिहान कैसा गया । 
उधर आरज़ू प्रतियोगिता भवन में बैठती है ,और प्रतियोगिता भवन में , अध्यापक रमेश की जगह अन्य अध्यापक को देख , आरज़ू निराश होती है , और अध्यापक रमेश के ना आने की वजह के बारे में सोचने लगती है । 

प्रतियोगिता आरंभ होती है , आरज़ू अपना पूरा ध्यान प्रतियोगिता में नहीं दे पाती और उससे प्रतियोगिता अधूरी छूट जाती है । जिसका आरज़ू को बहुत पछतावा होता है । और वह सोचती रहती है अब कैसे सबसे नज़रे मिलाउंगी यहीं सोचते हुए आरज़ू जैसे ही दरवाजे की तरफ, खड़े अपने पिता को देखती है तो अपनी करनी पर पचताती है ,और खुद को पिता के संपनो का दोषी मान , दौड़कर स्कूल की छत पर चढ , कूद जाती है । 

राजू के पिता भी श्याम को घर निराश मन से घर जाते है , और काफी गुस्से में घर का दरवाजा खटखटाते है । 
राजू की मां दरवाजा खोलती है , और तुरंत राजू के बारे में पूछती है । 
पिता के चहरे से गुस्से का भाव उड़ जाता है । और बैचैन आंखो से राजू को तलाशता है । सारी कोशिश कर , राजू का पिता हार जाता है और घर के कौने में बैठ खुद पर रोता है । 
पर घर का चिराग राजू फिर कभी वापस लौट कर घर नहीं आता है ।



Sunday, April 5, 2020

तालाश या पछतावा

यकीन मानिए आपका और हमारा दिल , कहीं ना कहीं किसी ना किसी , एक तालाश में रहता है । 
तालाश जैसे , रात को दिन की ,  रास्तों को मंज़िल की  , आपको हमारी और हमको आपकी ।ऐसे ही ना जाने कितने लोगो की तालाश जारी है , हर शहर , हर गांव और हर नगर में । 
पर  ऐसे में " एक तालाश " जो अक्सर हम आपको हर उम्र में रहती है , वह है प्यार की तालाश ।
लेकिन Alter Ishq की यह कहानी, प्यार को ढूंढ़ने की नहीं है , बल्कि उस प्यार को ढूंढने की है जो गुम हो चुकी है । 
तो आयिए उस गुमशदा प्यार की तालाश करते है । Alter Ishq की अपनी इस कहानी में .....

सांझ की दोपहरी में , एक युवक छत की गोद में बैठ सूरज को उसके घर जाते देख रहा था । 
तभी अचानक गली में , अनजाने शोर ने आहट सुनाई , और पास वाले घर में , राजू की किसी ने कर दी पिटाई । 
राजू की हालत देख , गली के ताऊ जी से रहा ना गया , लाठी उठाए राजू के घर तक चले आए और राजू को दो चार बाते सुनाई । ताऊ जी की आवाज़ बहुत भारी है तो गली के सारे लोग इकट्ठा हो गए । थोड़ी देर बाद ताई जी ने भी आवाज़ लगी और ताऊ जी को घर में बुलाया , बोली बेटी , शादी के बाद पहली बार घर आ रही है और तुम्हारी पंचायत खत्म नहीं हो रही ।
ताई जी की आवाज़ सुनते ही ताऊ जी , घर वापस चले गए । अब राजू का क्या हुआ क्या नहीं , कहनी इस विषय पर नहीं है , असल में कहानी के महत्पूर्ण किरदार ,वह छत की गोद में बैठा युवक है , जो सूरज को डूबते हुए देख रहा है , और वह लड़की है , जो शादी के बाद  पहली बार अपने घर आ रही है । 
चांद के निकलते ही , वह लड़की अपने पति के साथ ताई के द्वार पर आ जाती है और ताई उनको घर के भीतर ले जाती है । और थोड़ी सी दूर , छत पर बैठा वह युवक , ये सब बड़े गौर से देख रहा था । आंखे मानो उसी के आने का इंतजार कर रही थी ।  
समय का पहिया थोड़ा गुजरता है , तो सुबह उस लड़की का चेहरा , उसको अपनी छत से फिर से मुस्कुराता हुआ दिखता है ।  नज़रे मिलती नहीं है अभी तक , बस उम्मीद इतनी है उस युवक की ,  की जो तालाश वह आज तक कर रहा है ,  क्या वो भी वही तालाश कर रही है ।
इसी सोच में सुबह का पहर बीतता है , और शाम में बदलता है ।  
शाम को वह लकड़ी अपने पति के साथ अपने छत पर आती है , और अपनी नज़रे इधर उधर घूमती है , और अपने आस पास के बारे में , पति को बताती हैं , इसी बीच उसकी , आंखे आकर ठहर जाती है , उस छत पर जहां से वह युवक , निहार रहा होता है उसे ।
मुलाकात का सिलसिला आंखो से शुरू होता है , और खामोश मुख के साथ , बहुत सी बातों आपस में बयां होती है ।  इसी बीच दोनों की आंखे थोड़ी नम होती है , के तभी लड़की के पति की आवाज , उस लड़की के कान तक आती है , और उसका ध्यान उस लड़के से हटाती है ।
उस रात लडको को , चांद आसमा में मायूस नज़र आता है , उस मायूस रात के बीच , उस लड़की का फोन किसी अनजान नंबर से बजता है ।
फोन पर उस लड़की की आवाज़ सुनते ही , वह युवक भावुक हो जाता है , क्या कहे- नहीं , उसको कुछ समझ नहीं आता है । बातो का सिलसिला आगे बढ़ता है , तो युवक अपनी हर एक बात उस लड़की से कहता है , जो उस युवक को उस लड़की से करनी थी । 
 यह वह बाते थी जिसके लिए , वो लड़की उस युवक को आज तक दोषी समझती थी ।
युवक की बातो में , वह लड़की उसकी तड़प महसूस कर सकती थी , युवक ने जितनी भी बाते कहीं , वह सारी सच्ची थी । उसकी बातो सुन  वह लड़की पूरी रात सिसकती है । और सुबह सूरज की पहली किरण के साथ उसके घर , उससे मिलने निकलती है । 
घर का दरवाजा खुलता है ,और युवक की मां उस लड़की के सामने होती है , वह लड़की बड़ी उत्सुकता से , उस युवक से मिलने का ज़िक्र , उसकी मां से करती है । इतना सुनते ही उसकी मां उदास सी हो जाती है और कहती है , जो है ही नहीं उससे मिलोगी कैसे । बेटी अपने घर जाओ,,, और दरवाजा बंद कर घर के भीतर चली जाती है ।
लड़की को समझ नहीं आता , वह मायूस अपने घर तक आती  है , और उसका नम्बर कई बार लगाती है ,जीस नंबर से उसको कल रात फोन आया था । लेकिन उसका नंबर लगता नहीं है ।  
उसको इतना परेशान देख , ताई उसके पास आती है , और उससे, उसकी परेशानी की वजह पुछती है , तो वह लड़की सारी बात , ताई से हैरानी भरे नजरो से बताती है ।
इतना सुनते ही ताई निराश हो जाती है , और अपने सर को उस लड़की के आगे झुकते हुए , उस युवक को सच्चाई बताती है ।

ताई लड़की को बताते हुए कहती है , उस युवक की मौत आज से 8 महीने पहले , तेरी शादी के अगली शाम ही , छत से गिरने से हो गई थी । हमने समाज और अपनी आन के लिए तुझसे झूठी बाते कही और उस युवक को परिवार के नाम पर बहुत परेशान किया ।
रिश्तों और अपनों की जाल में वह ऐसा उलझा की आज तक निकल नहीं पाया। 
इतना सुनते ही , वह छत पर दौड़ कर जाती है , और डूबते सूरज के साथ , उस युवक की परछाई भी ढलती चली जाती है । और रह जाता है तो बस , " काला अंधेरा " । 
इसी अंधेरे में वह लड़की, छत की गोद में खड़ी खुद को निशब्द पाती है ।



Tuesday, March 31, 2020

गांव जाना अभी बाकी है ....

एक गांव है मेरा , जो यादों में बस्ता है।
 जहां सुबह का सूरज खुले आम मैदान में निकलता है । साथ ही साथ बाबूजी की थपकी पीठ पर भी लगती है । और 
दादाजी की लाठी ढूंढ़ने में वक़्त भी तो लगता है , 
मिल जाने पर , "दौड़" उनके पास ले आते है लाठी । लाठी देने के बाद , उनकी डांट खानी अभी बाकी है,
 जी हां दादाजी का प्यार अभी बाकी है । 

जब लाठी पकड़े दादाजी निकल जाते थे सबसे मिलने , हमभी दबे पांव उनके पीछे पीछे जाते थे । 
तब घर के द्वार पर बैठी दादीजी, दादाजी को आवाज लगाती है।  
दादाजी का मुड़कर गुस्सा करना बाकी है , जी हां दादाजी की लाठी वाली डांट अभी बाकी है ।

वहीं थोड़ी दूर गांव के मुखिया का घर है , बाबूजी के साथ उसका ना जाने उसका क्या मत है , दादाजी के जाते ही घर पर आ जाते है और साथ में बैठ चाय के साथ पकोड़े भी खाते है । 
 गांव के मुखिया की, बातो की पोटली अभी बाकी है , जी हां गांव के हर घर की कहानी अभी बाकी है ।

तभी पड़ोस के चाचाजी , अपनी गाय लिए हमारे द्वार से गुजरते है , और हमें देख द्वार पर , वो थोड़ी देर ठहरते है । 
हमें देख ना जाने क्यों क्रोध उन्हें आ जाता है और वही से ऊचे स्वर में ही बुलाते है । 
असल में चाचा जी का ज्ञान अभी बाकी है , जी हां चाचाजी की चाय भी अभी बाकी है ।

तभी दादाजी का बुलावा आता है , गांव का राजू अपने घर जाते जाते , दादीजी को बताता है , दादाजी चुने और सुरती का डिब्बा भूल गए है । 
दादीजी इतना सुनते ही राजू को दो चार सुनती है , फिर हमपर अपनी नज़रे गड़ाती है । 
दादाजी के डिब्बे को ढूंढ़ना बाकी है , जी हां हमारा चौराहे तक दौड़ना अभी बाकी है ।

चौराहे पर दादाजी के पास जाते है , पर दादाजी के साथ बैठी एक पूरी टोली है । दादाजी कुछ बात सबसे हमारे बारे में बताते है और हम सबकुछ समझते है । 
अपने से बड़ों का सम्मान अभी बाकी है , जी हां खेत खलिहान अभी बाकी है ।

दादाजी खेतो में लगे फसलों को दिखाते है , और बाबूजी के आने से पहले , हमसे फ़सलो में पानी चलवाते है । 
सच है , खेत में फसले खिलखिलाती है  और सही वक़्त पर पानी पा कर और मुस्कुराती है । 
बाबूजी का खेत में आना बाकी है , जी हां ट्यूबल के पानी में हमारा नहाना अभी बाकी है ।

नहाने के बाद हम खेत में टहलते है , तभी बाबूजी आवाज देते हैं, मां ने तुम्हारी खाने के लिए बुलाया है ।
मां की रोटी आज भी चूल्हे पर पकती है । हमे खिलाने के बाद ही वो खाना चखती है । 
खाने के बाद , गांव के मुंडेर तक जाकर आना बाकी है , जी हां दोपहर की वो मीठी नींद अभी बाकी है। 

दोपहर की नींद शाम में बदलती है , और शाम की चाय जैसे ही मां , नमकीन के साथ रखती है । तभी कल्लू चाचा के लडके और गांव के दोस्त द्वार से चिल्लाते है , खेलने नहीं चलोगे क्या। इतना सुनते ही चाय को प्याली को जल्दी से पी , नमकीन मुठ्ठी में लिए , द्वार पर आ जाते है । 
अभी राजू नहीं आया है , उसको बुलाना बाकी है , जी हां हमारा शाम का खेलना बाकी है ।

शाम के खेल के बाद ,
पूरा गांव घूमने के बाद , 
मुखिया के बगीचे से फल तोड़ने के बाद ,
नदी किनारे बैठने के बाद , जब घर थोड़ा देर से आते है । और बाज़ार से दादाजी की दवा लेना भूल जाते है ।
तब हम दबे पांव , घर के पीछे के द्वार से घर में आ जाते  है ।
 दादाजी का द्वार से घर में आना बाकी है , जी हां रात की पढ़ाई हमारी बाकी है ।

पढ़ते वक़्त सब आस पास ही रहते है , दादाजी और दादीजी थोड़ा ज्यादा पास होते है , और सब प्यार से हमे निहार रहे होते है । इसके साथ साथ पूरे गांव की बाते भी होती है और ये सारी बाते हमारे से होकर गुजरती है ।
बातो में सबके लिए प्यार भी बेशुमार होता है , और हमको तो रात के खाने का इंतज़ार होता है । 

इतने में रिमझिम सब्जी का एक प्याला लाती है , जो चाची भिजवाती है ।
 रात के भोजन के बाद बिस्तर की लड़ाई , अब तो हर दिन का रोना है । इधर उधर करने पर उठ जाता , बिछोना है। 
इसके बाद दादीजी की बाते अभी बाकी है , जी हां रात की वो खूबसूरत नींद अभी बाकी है । 

रात की नींद की नींद लेने के बाद , सुबह , समय पर उठना उठाना है , दिनभर के काम के बाद , गांव फोन भी तो लगाना है ।
 क्या करे , शहर का काम भी बहुत बाकी है , जी हां , हमारा गांव जाना अभी बाकी है ।

 






 

Thursday, March 26, 2020

कैद ज़िंदगी और ये वीराना ...,

किसी को ये कहने की जरूरत नहीं कि ,
आज स्कूल साथ चलते है , ऑफिस से जल्दी निकलेंगे ,
गाड़ी ज़रा देख कर चला, कैसे कैसे लोग है , 
दिन खराब हो गया, ये बाज़ार सबसे सस्ता है, 
कपड़ों का नया स्टॉक आया है, रिक्शे उस चौक से मिलेंगे ,
Ola- Uber बुक कर देता हूं, दोस्त के घर चलते है ,
पार्टी करते है और ना जाने क्या क्या....

या यूं कहो , 
हमें जीना है , तो मिलने की जरूरत नहीं ।
कुछ कहने , करने की जरूरत नहीं ।

ख्याल जैसे भी हो, अब खुद को थाम लेना ।
मन अगर घर से निकलने का हो, तो मन को मार लेना ।।

क्युकिं इन दिनों......
कुछ इन्हीं "हां" और "ना" के बीच , ज़िंदगी तालाश रही है  खुद की ज़िन्दगी । जिसमें उलझी सी है हमारी "सुबह" ,जो हर "शाम" सहम सी जाती है । 
अब तो बचपन में सीखी 100 तक गिनती भी , ना जाने क्यों डराती है । 
बंद पिंजड़े के पंछी भी , बहुत कुछ बोल जाते है ।
और मंजिलों के बीच बीछे ये काले चादर , विरानो में गीड गिड़ाते है ।

यह कैसा , अजीब सा माहौल बना है ,  इर्द गिर्द हमारे  , जहां शोर से ज्यादा खामोशी डराने लगी है ।

आलम यह है इस खामोशी का , कि
गलियों ने खिलखिलाना , सड़कों ने बुलाना और गाड़ियों ने घर जाना छोड़ दिया है । 
बच्चो की हंसी सुकून देती थी जिन्हें , सुना है उन बच्चो ने मुस्कुराना छोड़ दिया है ।
डर और खामोशी से फैले इस वीराने की वजह से, लोगो ने अब, जाना छोड़ दिया है ।
ये कैसी जंग है , कुदरत की इंसान से , जहां इंसान ने इंसान को छोड़ दिया है ।

जहां , शून्य है सब , लेकिन करोड़ों की गिनती अभी बाकी है । 
घूट रहे है सब , सांस लेना अभी बाकी है । 
थक गए है सब , दौड़ना अभी बाकी है ।
यह कैसा इश्क़ है फैला है ,  हमारे दर्मया जहां सब कुछ Alter है ,लेकिन , Confirm करना अभी बाकी है ।

अब तो , घरों में छिपी ज़िंदगी निहारती है खुद को , इन खिड़की दरवाजों से, पर ... इस पसरे पड़े वीराने को देख सहम जाती है ,  बोलती कुछ नहीं इस वीराने से , बस इसके लौट जाने के ख्याल से , खुद को कैद कर,  ये ज़िन्दगी मुस्कुराती और फिर शांत हो जाती है । 











Saturday, March 21, 2020

इश्क़ का हर पन्ना छिपा सा है ......

यूं तो हर फिज़ाओं में हमने इश्क़ को देखा है , कभी हसते , कभी नाचते , कभी अटखेलियां करते देखा है । 
ऐसी अनेक हरकत करते दिख जाता है , यह इश्क़ ।
 जो कभी हंसाता है , गुदगुदाता है , सताता है तो कभी कभी मायूस भी कर जाता है । 
और इस इश्क़ को  , देखना , पाना , और महसूस करना , हम और आप , एक ना एक बार जरूर चाहते है । 
और क्यों ना चाहे , आखिर ये इश्क़ , इतना खूबसूरत जो है । 
अब इस इश्क़ के रूप भी तो बहुत है ..,
 खूबसरत होने के साथ साथ , ये ज़िद्दी भी तो बहुत है , मासूम भी बहुत है , और साथ के साथ हमारे लिए खास भी तो बहुत है । 
ये इश्क़ है जनाब , बीना हम आपके , फैल भी तो नहीं सकता , सुन भी नहीं सकता और बोल भी तो नहीं सकता , ओर तो ओर हर उम्र में होता है , हर शख्स को होता है  ।
ये इश्क़ , छोटा - बड़ा , अमीर - गरीब , गांव - शहर , देश - विदेश , उच - नीच , इच्छा - सम्मान नहीं देखता ।
यह तो हर जगह , हर रंग में चढ़ता है , फूलों की तरह महकता है , हर वक़्त , कोई ना कोई गीत गुनगुनाता है ।
यह इश्क़ है साहब हम और आप को मिलकर रहना और जीना सिखाता है ।
यह इश्क़ वकालत भी खुद करता है , और फैसले भी खुद सुनता है । 

 लेकिन इन दिनों बागो से , वो दिलकश , मन को जीत लेने वाले , हवाओं में ख़ुशबू बिखेरने वाले , खूबसूरत फूल गायब है । जो इस इश्क़ का ख्याल रखते है ।
सुना है , इन फूलों को परेशान करने , दुनिया के हर बाग़ में , एक चोर आया है , जो इन फूलों को इश्क़ करने नहीं देना चाहता , इनको खुलकर महकना और खिलखिलाकर हंसते , देखना नहीं चाहता । 
इसीलिए , बागो के हर  , बागवान ने ,...., 
अपने - अपने बागो के हर फूल को छिपाना और उनपर निगरानी रखनी शुरू कर दी है । ताकि, उस चोर से अपने बाग़ के सभी खूबसरत फूलो को बचा सके , जिसे वह चोर नुकसान पहुंचाना चाहता है । 
क्यूंकि हर बागबान जानता , इन फूलों से फैलने वाले इश्क़ का महत्व , रंगो का महत्त्व , खुशबू का महत्व , और  खुद का इन खूबसरत फूलो के बिना , रहने का महत्व ।
वह जानता है , हर फूलो में शामिल , उसके पत्ते , डाली , मिट्टी और पानी का महत्व ।  
वह बागवान समझता है अपनी बैचैनी में , छिपी हैरानियो का महत्व  । या यूं कहो वह समझता है फिज़ाओं में इश्क़ के , ना होने का महत्व ।
वह सेहमा हुआ सा है ,  लेकिन अपने जिक्र में बेतहाशा फिक्र करता हुआ , नज़र आता है ।  
वह जानता है ........
इन दिनों इश्क़ का हर पन्ना , शांत है । जिस इश्क़ के पन्ने को पढ़कर , सब , सब कुछ बोल दिया करते थे  , आज उनके मुंह पर पट्टी सी लगी है । 
आंखे कहना और हाथ रोकना चाहते है बहुत , आंखो पर पहरा और हाथो पर सख्ती बड़ी है । 
अब यह इश्क़ बोलता नहीं , चलता नहीं , हंसता नहीं  पहले जीतना । शांत अकेले में बैठकर, बस यही चाहता है  कि वह चोर , बागो के फूलो को ना चुराए , ना नुकसान पहुंचाए और हमेशा के लिए उसके बाग को छोड़कर चला जाए । 
क्यूंकि ...,जिस इश्क़ के मनमानियों के शोर थे , फिज़ाओं में , आज वह मान सा गया है। 
उसके खिलखिलाते चहरो ने भी , गंभीरता को समझ , उसकी अंजानी सी सिलवटों को खुदमें समेट सा लिया है । 
जीस इश्क़ के फैसले के बाद सुनवाइयों की जरूरत नहीं हुआ करती थी , आज उस इश्क़ ने अपनी , परछाईं को भी चादर में ओढ़ सा लिया है ।
क्यूंकि ये इश्क़ रहना चाहता है , जीना चाहता है हमेशा... हम और आप में ।
यह जानता है अपने ज़िंदगी का हर वो हसीन लम्हा , जिसके लिए वह छिप रहा है । 
यह आना चाहता है , 
दुबारा खिलखिलाकर हसना चाहता है , 
उस खोफ़ के चादर को जलाकर , जिसने उसे छिपा लिया है खुद में  । 
बस अपने बाग को , जिसकी खूबसूरती उसके हसीन  फूलो से है उसको,  उस चोर से बचना है ।
फिर , यह इश्क़ भी  मुस्कुराते हुए लौट आएगा ।




Monday, February 24, 2020

बस की मनपसंद सीट , और अफसोस

भारत में बस का सफ़र , यकीनन बहोत ही खूबसूरत होता है । अब बात चाहे long journey की हो या फिर शहर गांव के सफ़र की । दोनों ही सूरत में ये सफ़र और भी खबसूरत हो जाती है , जब आपको अपनी मनपसंद  सीट मिल जाती है।
फिर आपको वह सब चीज अचानक ही सुन्दर और अदभुत लगने लगती है , जिसका आपके वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है ।
अब वह फिर चाहे Driver के बजते मनपसंद गाने हो , या फिर कंडक्टर के द्वारा लगाई जाने वाली आवाज़ या फिर उसका शोर । आप सब Enjoy ,कर रहे होते हैं । 
कुछ इसी तने बने में बुनी यह कहानी है l
तो आइए Alter Ishq की ये कहानी पड़ते है , उम्मीद है आपको पसंद आएगी । 

गांव का एक अल्हड़ लड़का , शहर आकर दो साल से काम कर रहा था । के अचानक उसके परिवार में उसके शादी की बात की चर्चा शुरू हो जाती है । और इस वजह से उसको रिश्ते की बात को आगे बढ़ाने के लिए गांव जाना पड़ता है । 

वह इस ख़बर के बाद खुश बहोत था , मानो अपनों से मिलने की उसकी व्याकुलता साफ साफ उसके चहरे पर देखी जा सकती थी ।  
चहरे पर मुस्कान , बातो में बचकानापन और  आंखो में चमक , साफ साफ उसकी इच्छाओं को प्रकाशित कर रही थी । 
उसे शहर से अपने गांव जाना था , सो उसने अपनी टिकट एक बस से करवाई , और अपनी पनपसंद सीट  ( जो हम आप की अक्सर होती हैं )  Window वाली ली और अपनी सीट पर उस दिन समय से पहले पहोच कर अपनी सीट पर बैठ गया । 
उस वक़्त बस की अधिकतर सीटें खाली थी । वह वक़्त से पहले को पहोंच जो गया था ।  धीरे धीरे बाकी पैसेंजर भी आने लगे ।
उसके मन में कल्पनाओं भाव उठने लगा ।  और दिमाग में सौ विचार , उछल कूद करने लगे ।  उसको ये फिक्र सता रही थी कि उसके साथ वाली सीट  पर कौन आएगा । 
के अचानक एक बेहद ही खूबसूरत लड़की उस बस के गेट से अंदर आती है और उस लड़की को देख , लड़के की पलके झुकना भूल जाती हैं । आंखे उसी को निहारने लगतव हैं, और दिल दिमाग बस यही सोच रहा होता है कि... बस वो उसके साथ वाली सीट उसकी हो । 
वह लड़की उसके पास आती है और सीट नंबर कन्फर्म करती है , लेकिन वह 3 4 सीटों का ज़िक्र करती है । तो दिमाग तैनात हो जाता है और उसके आस पास खड़ी उसकी family को भी देखता है । जिसमे उसका  भाई  और माता पिता  भी शामिल थे ।  जिनको उसकी आंखो ने देखने से इंकार सा कर दिया था ।
ख़ैर उनको देख दिमाग इत्मीनान से उनको सीट की डिटेल बताता है और खुद को तसल्ली देते हुए , बस के गेट की तरफ देखने लगता है ।
बस आगे चलने लगती हैं और वह लड़का , खूबसरत वादियों , नदियों , खेतो  , फसलों  और अपनी यादों का लुफ्त लेने लगता है । अपनी विंडो सीट का वह पूरा आनंद ले रहा होता है कि अचानक बस एक स्टॉप पर आकर रुकती है । 
और आंखे फिर उस बस के गेट पर चली जाती है । 
इस बार फिर एक खूबसरत लड़की बस में चढ़ती है और आकर, उस लड़के के आगे वाली सीट पर अंकल जी के साथ बैठ जाती है ।  
उस लड़की को देख,  उस लडके का मन अपने साथ में बैठे बूढ़े पर नाराज़ सिर्फ इसलिए होता है कि उन्हें भी उसी स्टॉप पर उतरना होता है । और वह कंडक्टर को आवाज़ देर से देते है । 
मन एक घने अफसोस के बदलो से गुजर जाता है । 

बूढ़े के उतारने के बाद बस चलती हैं , और वह लड़का  उस लड़की को देखते हुए , अपनी शादी को लेकर , खुशनुमा यादों में खो जाता है । 
क्या होगा, कैसा होगा ऐसे अनगिनत सवालों से उसका दिमाग़ लड़ने लगता है । 
पर मन ही मन वह अपनी सीट से ज्यादा , उस अंकल की सीट को महत्व देने लगता है  जिसके साथ वाली सीट पर वह खूबसरत लड़की बैठी थी । 


Tuesday, February 18, 2020

अनजानी सी गलती ...

हम आपकी जिंदगी में खुशियां का महत्व उतना ही हैं जितना फूलों में, महकती खुशबू का । इसी महकती खुशबू को जीने के लिए हम और आप अक्सर अपनों से हंसी मज़ाक करते हैं , जो हमारे भीतरी मन को गुदगुदाते है और हमारे मुख पर , प्यारी सी मुस्कान छोड़ जाते हैं ।

लेकिन कुछ पल ऐसे है , जो प्यार मोहब्बत और अपनेपन से भरे , इन खुबसूरत लम्हों को उदास कर जाते हैं ! और छोड़ जाते हैं अपनों के चहरे पर वो मायूसी , जो हम-आपको भी सताती है ।

कुछ ऐसी ही कहानी हैं , जहां ये Ishq बहुत चमकदार तो है पर अचानक इस Ishq की चमक धुंधली पड़ जाती हैं । और बनाती हैं Ishq की एक ऐसी कहानी , जो इस खुबसूरत Ishq को Alter बनाती है ।

तो शुरू करते हैं Alter Ishq की इस कहानी को , आशा करते हैं आप पसंद करेंगे ।

फरवरी महीने की बीतती सर्दी के बीच , शादी का ताना-बाना बुना जा रहा था , कहीं बेहतर पकवान बन रहे थे तो कहीं साजो सामान का ख्याल रखा जा रहा था और इसी के साथ-साथ रिश्तेदारों का जमावड़ा भी काफ़ी खुबसूरती से अपने पंख फैला रहा था । 

और ऐसे में,  हंसी मज़ाक से भरी बातों को करते,  बच्चों का एक झुंड , काफ़ी खिलखिला रहा था , जिसको देख , उस घर के बड़े भी अपनी भागीदारी , समय-समय पर दे रहे थे । 
सब बहोत खुश थे और खुब हंस रहे थे ।

माहौल बेहद ही खुशनुमा था , लेकिन उस झुंड में बैठी एक लड़की अचानक मायूस हो जाती है , और अपनी दोनों आंखों को नम कर , वहां से उठ बाहर चली जाती है । 

ऐसे में , पूरा माहौल शांत पड़ जाता है , और सबकी निराश नजरें , उस एक लड़के को निहार रही होती हैं जो कुछ देर पहले तक तो बहोत , बातूनी था , और इस बेहद खूबसूरत पलों का , एक खुबसूरत हिस्सा था ।
पर अब वह बिल्कुल नि:शब्द था । 

इतना शांत था , जैसे बंजर भूमि बिना फसल के दिखाई देती है । उसकी आंखें मानो , मौका तलाश रही थी इस बंजर भूमि को भिगोने का । 
 उसके लब उस लड़की से , अपने को निर्दोष कहना तो बहोत चाहते थे लेकिन उसकी ओर उठी नज़रों ने , उसके लबों , मानो कोई इजाज़त नहीं दी , कुछ भी बलने की।
 
लड़की की भीगी आंखें , उस लड़के के मन को हर वक्त तोड़ रही थी । और उसके चेहरे पर निराशा , के बादल छोड़ रही थी । 
उसे अपनी गलती का एहसास तो था , पर लड़की की आंखों से निकले आसूंओं और अपनो के चहरो पर आई निराशा का , उसको ज्यादा ख्याल था ।

थोड़ा वक्त बीतता है और वह लड़का , घर के द्वार पर बैठ ,  अपनी गलती के बारे में सोचता है ।  कि तभी  उस लड़की का फोन उसके फ़ोन पर आता है , और उसके द्वारा अनजाने की गलती को  , वह लड़की समझ , उसको दोशी नहीं बनाती है । 
उस लड़के के नि:राश मन , थोड़ा शांत होता है । 
और उस लड़की से अपनी बात , खुद के लबों से बोलने के बाद । उसका मन फिर मुस्कुराता है । और घर का 
माहौल फिर से खुशनुमा हो जाता है और सब बेहद खुश नज़र आते हैं। 

पर कहीं न कहीं , कुछ फासले ,अब दूरियों में बदलते नज़र आ रहे थे‌ उसे । 
जिससे उसका मन , अब भी एक सवाल में उलझा रहता है । कि .........
क्या,  वास्तव में उस लड़की ने, उसको माफ़ किया या नहीं ।







Friday, February 7, 2020

मुझे उससे मिलना था ...

वक़्त की करवटों के साथ , कहानियों का संग्रह होना लाज़िमी हैं । कहानियां जिसमें खुबसूरत यादों के , फूलों को पिरो , उसको एक माला का आकार दिया है । 
कुछ ऐसी ही खुबसूरत यादों का , एक सुन्दर सार है यह कहानी ।  जिनमें रोज़ की बातों से ज्यादा , उन नटखट , सुन्दर और आकर्षक पलों को बताया है , जिसमें ये कहानी बसती है , तो आईये शुरू करते हैं , ALTER ISHQ की ये कहानी , आशा है आपको पसंद आएगी .....!!

दुध सी सफेद , गर्मी का वो दिन,  जब वो पहले दफा , हमारे गली में खाली पड़े जमीन को देखने , अपने परिवार संग आई थी ।  और मैं उसी गली में दोस्तों के साथ कंचे खेलता हुआ  , उसको देख , देखते ही रह जाता हूं । 
8- 10 साल की उम्र में यह कैसा आकर्षण था जो बयान नहीं हो रहा था ।  जुबां तो कुछ कह नहीं रही थी , और आंखें किसी और से बोलना नहीं चाहती थी ।
 खैर जमीन का वो खाली हिस्सा उसकी Family खरिद लेती है । पर अपना घर,  वो 10-12  साल बाद उस खाली,  खरिदी जमीन पर बनवाते हैं । इंतजार के 10-12 साल बाद वो एक बार फिर से , मुझे दिखाई देती है ।
इस बार भी उसको देख , वहीं रुक जाने का दिल किया । इन ढूंढ़ती आंखों को बहोत बातें करनी थी उससे और लबों को तो मानो इन्कार कर दिया था कुछ कहने से ।
लेकिन उम्र के इस पड़ाव में , पैरों को चाहकर भी रोक ना सका , बदनाम ना हो जाऊं कहीं इन आंखों की मनमानियों से , इसलिए खुद को बहोत जल्दी रूकसद करना पड़ा ।  
माना एक अरसा गुज़ारा है इन आंखों ने खामोशियों में , पर बात भी तो ,अपनी गली की थी । 
फिर भी दिल ना जाने क्यों बहोत खुश था । शायद वो समझ बैठा था,  कि घर तो अब बनवा लिया है, तो कभी ना कभी मुलाकात तो होगी । और दिल को शायद इस बात की काफ़ी खुशी थी , कि 10 - 12 साल बाद ही सही , अब वो इन आंखों के पास तो रहेगी । 
लेकिन वह घर उन्होंने बनवाकर , किरदार को किराए पर दे दिया । 
और करीब 5-6  साल बाद,  उसका पूरा परिवार,  अपने घर में रहने के लिए आए ।
पर इस बार परिवार में सब तो दिख रहे थे , पर मन जिसको देख कर मिलना चाहता था , वो नहीं दिख रहा था । आंखें मानो बेचैन सी हो गई थी । लबों को इशारा तो बहुत किया , केहने को । लेकिन घबराईए आंखों से कुछ बोला नहीं जा रहा था ।
काफ़ी समय बाद लबों ने , हरकत दिखाई , तो उसकी शादी की बात सामने आई ।

उस दिन मैंने खुद से बेहद बातें की , खुद की गलतियां खोजी । 
आंखों को आईने के पास लेजाकर , उन आंखों से खुद को कई बार देखा । पर कुछ ख़ास जवाब , खुद से मिला नहीं ।
खैर यूं तो , 
मिलकर उससे , मुझे बहुत कुछ कैहना था ।
बीते इस लम्बे इन्तज़ार को , 
उसके चुनर में जड़ें , उस मोती सा छोटा करना था ।
हां , मुझे उससे मिलना था ....!!