आज स्कूल साथ चलते है , ऑफिस से जल्दी निकलेंगे ,
गाड़ी ज़रा देख कर चला, कैसे कैसे लोग है ,
दिन खराब हो गया, ये बाज़ार सबसे सस्ता है,
कपड़ों का नया स्टॉक आया है, रिक्शे उस चौक से मिलेंगे ,
Ola- Uber बुक कर देता हूं, दोस्त के घर चलते है ,
पार्टी करते है और ना जाने क्या क्या....
या यूं कहो ,
हमें जीना है , तो मिलने की जरूरत नहीं ।
कुछ कहने , करने की जरूरत नहीं ।
ख्याल जैसे भी हो, अब खुद को थाम लेना ।
मन अगर घर से निकलने का हो, तो मन को मार लेना ।।
क्युकिं इन दिनों......
कुछ इन्हीं "हां" और "ना" के बीच , ज़िंदगी तालाश रही है खुद की ज़िन्दगी । जिसमें उलझी सी है हमारी "सुबह" ,जो हर "शाम" सहम सी जाती है ।
अब तो बचपन में सीखी 100 तक गिनती भी , ना जाने क्यों डराती है ।
बंद पिंजड़े के पंछी भी , बहुत कुछ बोल जाते है ।
और मंजिलों के बीच बीछे ये काले चादर , विरानो में गीड गिड़ाते है ।
यह कैसा , अजीब सा माहौल बना है , इर्द गिर्द हमारे , जहां शोर से ज्यादा खामोशी डराने लगी है ।
आलम यह है इस खामोशी का , कि
गलियों ने खिलखिलाना , सड़कों ने बुलाना और गाड़ियों ने घर जाना छोड़ दिया है ।
बच्चो की हंसी सुकून देती थी जिन्हें , सुना है उन बच्चो ने मुस्कुराना छोड़ दिया है ।
डर और खामोशी से फैले इस वीराने की वजह से, लोगो ने अब, जाना छोड़ दिया है ।
ये कैसी जंग है , कुदरत की इंसान से , जहां इंसान ने इंसान को छोड़ दिया है ।
जहां , शून्य है सब , लेकिन करोड़ों की गिनती अभी बाकी है ।
घूट रहे है सब , सांस लेना अभी बाकी है ।
थक गए है सब , दौड़ना अभी बाकी है ।
यह कैसा इश्क़ है फैला है , हमारे दर्मया जहां सब कुछ Alter है ,लेकिन , Confirm करना अभी बाकी है ।
अब तो , घरों में छिपी ज़िंदगी निहारती है खुद को , इन खिड़की दरवाजों से, पर ... इस पसरे पड़े वीराने को देख सहम जाती है , बोलती कुछ नहीं इस वीराने से , बस इसके लौट जाने के ख्याल से , खुद को कैद कर, ये ज़िन्दगी मुस्कुराती और फिर शांत हो जाती है ।
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