आज भी कुछ आंखों में खुशी नहीं आती हैं
और चेहरे पर ऐसे भाव दिखाई देते है, मानो
कोई समझौता सा किया हो ख़ुद से ।
समस्याओं कि एक ऐसी पहेली में फस जाते ये सब, जिसका जवाब मैं , हर वक्त , हर जगह , और हर शब्द में देती हूं ।
जिन्दगी को छिनना और इस छिनी गई जिंदगी को , जीकर बताना , ऐसी ज़िद्द मैं बरसों से करती आई हूं ।
मैं लड़ती हूं , बीखरती हूं , टूटतीं और संवरती भी हूं
पर हार जाने से , मैं आज भी बहुत डरती हूं ।
हां मैं लड़की हूं , जो हर वक्त बदलती आई हूं।
लेकिन आज मेरी लड़ाई ओर अधिक बढ़ गई है । शायद मेरी ज़िद्द ने मुझे , बहोत ताक़तवर बना दिया है ।
क्योंकि किसी एक की औकात नहीं , जो मुझसे जीत सके , सब झुंड में ही आते हैं, और वो भी तीर कमान लिए ।
और नहीं होती हिम्मत जो मेरे मुंह पर बोल सके , सहम जाते हैं सब , अपनी छोटी बात लिए ।
पर मुझे अभी और शक्तिशाली बनना है , कि
झूक जाए वो नज़रें , जो मुझे हर तरफ घूरती है ,
खत्म हो जाऐ वो वहशीपन,
जो मुझे घूरते वक्त , उनकी सोच बनती हैं ।
यूं तो हर उम्र में लड़ती आई हूं और लड रही हूं ।
लेकिन फिर भी पुछ बेठती खुद से , कि
किस उम्र में खेलूं कूदू , या पढू क़िताबें खोल के ,
बाबूल के आंगन में ही डसते , कितने काले लोग रे।
ऐसी बहुत सी कहानी है मेरी , जिनमें मैं कमजोर लगती हूं । मुझे लड़ना है और अपने हर सवाल का जवाब जानना है , जैसे कि,,
चौदह दिन का छोटा पौधा, क्यों तुने खिलवाड़ किया ।
दो महीने सींचा फिर से, क्यों टेहनी पर वार किया ।
चार साल तक बचती आई ,क्यों पत्ता पत्ता तोड़ लिया।
सात साल में लड़कर मर गई, क्यों बारह में उखाड़ दिया।
१३, १५, १७, २६ हर उम्र में , क्यों विनाश किया ।
कैसी है हैवानियत तुझमें , कि
मरने के बाद भी, मेरा शिकार किया ।
लेकिन,
एक दिन वो भी आएगा जब मैं , इन सब सवालों का जवाब लूंगी और तेरी हैवानियत खड़ी जल जाएगी ।
तब मैं किसी से मदद नहीं मांगूंगी , मोमबत्ती नहीं जलवांउगी , शोर नहीं मचवांउगी बल्कि
मैं भी तुझे जिंदा वहीं जलाऊंगी और बेपनाह चिल्लाऊंगी ताकि तेरी चिख़ भी ना सुन ले कोई ,
मैं ऐसा तांडव मचाऊंगी ।
मत भूलो मैं वो लड़की हूं
जिसने बंद दरवाजों से हवाओं का सफर किया है ।
तुम्ही को पाल , तुमको कांधे तक किया है ।
मैंने नदियों से , समंदर का रास्ता तय किया है ।
और सबसे जरुरी बात, तुमको पैदा तक किया है ।
अगर जाग गई हैवानियत मुझमें( लड़की )
तो क्या तुम कर पाओगे ,
पैदा होना तो दूर , पनप तक ना पाओगे ।
हां मैं लड़की हूं ।
कब तक नोची जाएगी मासूमों की मासूमियत
ReplyDeleteऐसा लगता है कि मर गई है इंसानों की इंसानियत
Ye mansiktaa itni jldi nhi bdlegi
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