Saturday, December 14, 2019

एक दोस्ती ऐसी भी,,,

" दोस्त " एक शब्द है , जिंदगी में आने वाले पहले अंगड़ाई का । जिसके साथ से,  ये जिंदगी सुलझने लगती है । और इस जिंदगी में मिठास घोलने लगती है। 
लेकिन कुछ जगह ये दोस्ती उलझ सी जाती है, और कड़वा सी कर देती हैं , इस जिंदगी को।
कुछ ऐसी ही कहानी है इस Alter Ishq की , जहां उलझी उलझी सी है दोस्ती , और उलझे उलझे हैं वो सब ।
तो आइए पढ़ते हैं , "एक दोस्ती ऐसी भी " ।
एक शहर , जिससे दूर एक कस्बा बस्ता है , जिसमें कुछ जिंदगियां ,खुद से जीने का , संघर्ष कर रही हैं । 

इन्हीं जिंदगी में से दो जिंदगी निकल आती है , इस शहर मे , जहां लोगों के बीच दूरियां बहुत है , लेकिन फिर भी सब मिलकर रहने की कोशिश करते हैं ।
हां इसी शहर में ,जहां ये शहर बोलता तो नहीं पर कभी कभी चिखता ज़रुर है । 

तो इस शहर में , यश और मानसी भी अपनी अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने आते हैं । क्योंकि वो मानते थे कि शहर हमारे कस्बे से काफ़ी बेहतर और खुबसूरत है , शहर में सब से रहते हैं , अच्छा पढ़ते हैं, बड़ी बड़ी गाड़ी में सवारी करते हैं , और अच्छे पैसे कमाते हैं , ऐसे ना जाने कितने उम्मीदों को लेकर , वो दोनों भी शहर आये थे ।
यश का स्वभाव अच्छा था और पढ़ाई भी अच्छी की थी तो यश को नौकरी जल्दी मिल जाती है , लेकिन मानसी यश के विपरित थी । इसलिए शहर में मानसी को सफलता नहीं मिल पा रही थी। लेकिन यश ने मानसी का साथ नहीं छोड़ा था और उसको अपने घर में रहने के साथ-साथ , उसकी मदद भी करता था । 
वक्त के साथ साथ , मानसी और यश एक दूसरे के बहोत अच्छे दोस्त बन गए थे और एक दूसरे से अपनी सारी बात करते थे ।
एक दिन मानसी बेहद निराश बेठी थी और खुद से बेहद परेशान भी थी ।  तो यश केहता है , देख मानसी अब ना तो तेरे पास पैसे बचे हैं और ना ही तुझको तेरे मुताबिक कोई काम मिला है ।  अगर तु , बोले तो मैं अपने Office में बात करूं , अब तो मुझे भी काफ़ी वक्त हो गया है और उनको नये Staff  की भी जरूरत है । मानसी को नौकरी में कोई दिलचस्पी नहीं थी , लेकिन हालात बिगड़ते देख उसने नौकरी के लिए मनाया खुद को , और यश के साथ नौकरी करने लगी , और धिरे धिरे यश को पसंद करने लगी थी लेकिन यश इन सबसे अनजान था । और इधर यश भी किसी को चाहने लगा था और वो भी उसी Office  में थी पर वो मानसी नहीं थी। 
मानसी को यश का किसी के पास जाना , उसके पास किसी भी लड़की का आना , अब पसंद नहीं आ रहा था । मानसी यश को लेकर बहोत गम्भीर हो गयी थी । 
और यश अभी अनजान था मानसी की गम्भीरता को लेकर जो कि अब एक सनक बन चुकी थी शायद । 
एक दिन यश ने अपनी बात मानसी से बताई , कि वो और सपना एक दूसरे को पसंद करते हैं और हमने एक दूसरे के परिवार से भी बात कर ली है , जल्द ही हम दोनों एक हो जाएंगे , पिता जी भी जल्दी शहर आ रहे हैं । 
मानसी को ,  ये बातें सुनकर गुस्सा आ जाता है और वो अपने कमरे में चली जाती है , और अपने सपनों को फिर से टुटता देख , वो एक ग़लत फैसला कर जाती है । 
और रात के खाने में ज़हर मिलाती है । 
यश खाना खाने के बाद हमेशा के लिए शांत हो जाता है और मानसी उस शांत पड़े यश पर , देर रात तक , चिखती है - चिल्लाती है और अंत में खाने का बचा हिस्सा , वो भी खाकर , हमेशा के लिए सो जाती है ।

उस रात भी यह शहर चीखा और देर सुबह तक इसका शोर शहर के हर हिस्से में बना रहा और फिर ये शहर शांत हो गया ।











Monday, December 2, 2019

हां मैं लड़की हूं ....

मेरे , घर में आने पर , 
आज भी कुछ आंखों में खुशी नहीं आती हैं 
और चेहरे पर ऐसे भाव दिखाई देते है, मानो 
कोई समझौता सा किया हो ख़ुद से ।
समस्याओं कि एक ऐसी पहेली में फस जाते ये सब, जिसका जवाब मैं , हर वक्त , हर जगह , और हर शब्द में देती हूं । 
जिन्दगी को छिनना और इस छिनी गई जिंदगी को , जीकर बताना , ऐसी ज़िद्द मैं बरसों से करती आई हूं ।
मैं लड़ती हूं , बीखरती हूं , टूटतीं और संवरती भी हूं 
पर हार जाने से , मैं आज भी बहुत डरती हूं ।
हां मैं लड़की हूं , जो हर वक्त बदलती आई हूं। 

लेकिन आज मेरी लड़ाई ओर अधिक बढ़ गई है । शायद मेरी ज़िद्द ने मुझे , बहोत ताक़तवर बना दिया है ।
क्योंकि किसी एक की औकात नहीं , जो मुझसे जीत सके , सब झुंड में ही आते हैं, और वो भी तीर कमान लिए ।
और नहीं होती हिम्मत जो मेरे मुंह पर बोल सके , सहम जाते हैं सब , अपनी छोटी बात लिए ।

पर मुझे अभी और शक्तिशाली बनना है , कि
झूक जाए वो नज़रें , जो मुझे हर तरफ घूरती है , 
खत्म हो जाऐ वो वहशीपन, 
जो मुझे घूरते वक्त , उनकी सोच बनती हैं ।
यूं तो हर उम्र में लड़ती आई हूं और लड रही हूं ।
लेकिन फिर भी पुछ बेठती खुद से ‌, कि

किस उम्र में खेलूं कूदू , या पढू क़िताबें खोल के , 
बाबूल के आंगन में ही डसते , कितने काले लोग रे। 

ऐसी बहुत सी कहानी है मेरी , जिनमें मैं कमजोर लगती हूं । मुझे लड़ना है और अपने हर सवाल का जवाब जानना है , जैसे कि,,
चौदह दिन का छोटा पौधा, क्यों तुने खिलवाड़ किया ।
दो महीने सींचा फिर से, क्यों टेहनी पर वार किया ।
चार साल तक बचती आई ,क्यों पत्ता पत्ता तोड़ लिया।
सात साल में लड़कर मर गई, क्यों बारह में उखाड़ दिया।
१३, १५, १७, २६ हर उम्र में , क्यों विनाश किया ।
कैसी है हैवानियत तुझमें , कि
मरने के बाद भी, मेरा शिकार किया ।
लेकिन, 
एक दिन वो भी आएगा जब मैं , इन सब सवालों का जवाब लूंगी और तेरी हैवानियत खड़ी जल जाएगी ।

तब मैं किसी से मदद नहीं मांगूंगी , मोमबत्ती नहीं जलवांउगी , शोर नहीं मचवांउगी बल्कि  
मैं भी तुझे  जिंदा वहीं जलाऊंगी और बेपनाह चिल्लाऊंगी ताकि तेरी चिख़ भी ना सुन ले कोई , 
मैं ऐसा तांडव मचाऊंगी ।

मत भूलो मैं वो लड़की हूं 
जिसने बंद दरवाजों से हवाओं का सफर किया है ।
तुम्ही को पाल , तुमको कांधे तक किया है ।
मैंने नदियों से , समंदर का रास्ता तय किया है ।
और सबसे जरुरी बात, तुमको पैदा तक किया है ।

अगर जाग गई हैवानियत मुझमें( लड़की )
तो क्या तुम कर पाओगे , 
पैदा होना तो दूर , पनप तक ना पाओगे ।

हां मैं लड़की हूं ।