आपके दिए आदर्शों को , जगह जगह पर रख रहा हूं ...
सोचते, विचारते, चलते , आपकी तरह ही ढल रहा हूं ..
सर पर काले जुग्नूओ की कुछ कमी सी होने लगी है ...
और सर पर गिरते तेल को ठंडक महसूस होने लगी है ...
कहने से पहले बातो को अब कई बार सोचने लगा हूं ...
सच कहूं , आपके कंधे पर रखे उस बोझ को सहने लगा हूं ...
ठंडे चाय की शिकायत , अब अक्सर नहीं करता ,
आपसे जुड़ी मेरी शिकायत भी , अब नहीं किया करता ,
हालातो को समझ में भी चलने की कोशिश में लगा हूं...
सच कहूं , आपके उन तकलीफों को अब समझने लगा हूं....
अब एक दर्द सा बना रहता है मेरे सर मै ...
बदन की थकावट भी आपसे मिलने जुलने लगी है ...
आपको होती शिकायतों से अब मिलने लगा हूं...
सच कहूं , आपके उन सर्सराते लम्हों को मैं जीने लगा हूं...
सच-झूठ की मंडी में , मैं भी भटकता हूं इन दिनों ,
लोगो के थोड़े बहुत चेहरे , मैं भी पढ़ता हूं इन दिनों ,
अब औरो के माथे पर आयी सिलवटें देख सवाल करने लगा हूं ...
सच कहूं , आपके टूटते उम्मीदों को , महसूस करने लगा हूं...
कोरी ठंड में , मैं भी दबे पांव निकलने लगा हूं ...
फटी जुराबो को अब कुछ रोज़ और पहने लगा हूं ...
अब जिम्मेदारियों से जीने की आदत , आपसी डालने लगा हूं ....
सच कहूं , आप के परवाह की परिभाषा, मैं भी समझने लगा हूं..
अब एक पेन और डायरी मैं भी रखता हूं ,
कभी कभी तो लंबी लंबी लाइन में भी घंटो लगता हूं ,
आपकी की तरह सबकी बातो को याद कर, बाते भी करता हूं...
सच कहूं आपसे , कुछ नादानो को थोड़ा पागल सा लगता हूं ...
आपकी और आपके साथ बीते दिनों को बहुत याद आती है ..
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