Monday, May 22, 2023

बस यूंही.....

यूं तो ज़िंदगी को समझना इतना आसान नहीं, जितना मुश्किल बना दिया हम_आपने, " या यूं कहे, लोग सामने पड़ी तस्वीर को इंसान समझने लगे है "..
जानते है वो सुन नही सकता, समझ नही सकता, चलना नहीं जानता, कुछ कह नहीं सकता, बेजान सा है , फिर भी हमारा सबसे खास है ।

हमने ज़िंदगी गवा कर अक्सर वो चीज़ कमाई है , जो हमसे कभी नहीं जुड़ती, ठहर जाती है कही किसी कोने में, या फिर दूर रह , ये एहसास दिलाती हैं कि मंज़िल के पीछे तो तुम भाग सकते हो, लेकिन मंज़िल तक पहुंचने से पहले अपनी तकलीफ नहीं बता सकत, लोग सुनेंगे ही नहीं, सुना देंगे...तुम टूटोगे नही , तोड़ दिए जाओगे ।

इसीलिए पहले हासिल करो.....फिर वो होगा जो हम अक्सर देखते है , कुछ भेड़ तुमको देखेंगे तुम्हारे ही पीछे दौड़ेंगे, और जब उनको कुछ हसील करने में वक्त लगेगा, तो तुमको ही कोसेंगे...
तुम्हारी मेहनत को कुछ वक्त के लिए , बताया और संवारा जायेगा , फिर उसी को कुछ वक्त बाद,  मन चाहे अटकलों से उतारा जाएगा...।
"खुशी के दिनों की गिनती महज चार दिन है" , ये बात उतनी सही है , जितना तुम खुद को सही बताने में लगा देते हो ।

मैं चैन ढूंढता हूं, सुकून ढूंढता हूं, लेकिन ये सब खुद में नही, दूसरे की लकीरों में ढूंढता हूं ... भरोसा खुद पर बहुत है , मानो आसमां से भी गिरेंगे तो Parashute तो साथ होगा ही होगा...
मेरा काम तो आसमान छूना है , ये छोटी मोटी दिवारे को मैं नही छूता , ये तो उसका काम है जिसमे में कभी ना पडू, छोटी चीजें मैं कभी नहीं सोचता, इन सबको तो यही रह जाना है , मेरी लड़ाई बहुत बड़ी है ।

कुछ वक्त दो , सब बदल जाएगा , मैने भी इन्टरनेट की दुनिया से कुछ सपने चुराए है, ये चोरी उतनी ही सच्ची है , जितना अली बाबा को मिला खज़ाना..

तेरे इंतजार में मेने दो वक्त की रोटी में कमी कर दी हैं, मैं जानती हूं , तू जरूर कुछ बड़ा करेगा , वक्त काट खाने को आता होगा उस वक्त उसे , जिस वक्त को, वो संवारने में लगी हैं, ताजुब की बात यह है , कि जिस वक्त को सावरता हुआ देखना चाहती है, उसको वो बीते वक्त में अच्छे से जानती हैं ।

बड़ी अजीब सी कश्मकश है , 
खुद को बेहतर करने का वक्त चल रहा है , 
या खुदी में डूब जाने का , फसा के रख दिया हैं, इस शाम के चाय ने ।

बड़े जाहिल लगते है खुद को, कभी खुदी को होशियारी में डूबो देते है ..
अर्श से फर्श तक सफ़र , हम अब अक्सर चुटकियों में तय कर लेते है..

इस ऊपर लिखे , हुनर को हासिल करने कि, तारीफ हमारे बेहतर होने की करनी चाहिए, या हमारा बहुत अधिक बेहतर होने की, तुलना करना मुश्किल है, लेकिन यह तुलना करने की शक्ति रखना ही तो हमें, बेहतर बना रही या फिर कमजोर.. खैर छोड़ देते है , डर लगता इतना ज्यादा सोचने पर ।
वैसे..
आजकल मिलने से पहले , तय हो जाती है वक्त देने की सीमा, जहां लोग कभी मुद्तो गुजार दिया करते थे... यहां क्या सच में खुद को बेहतर करने के लिए हम उनसे काफी आगे निकल जाते है ? ,या यूं कहे, वो जो हमारे साथ उस तरफ दौड़ना नही चाहते, जहां हम दौड़े ( यहां बात इच्छा की है बस) और वह कमज़ोर से दिखने लगते है वक्त के साथ हमें.. क्या, सच में हम सब इतने मजबूत या समृद्ध बन जाते है ,की खुद को संपन बता सके उनके अपेक्षा ।
पता नही ....!! 

लेकीन....
मानसिक और आंतरिक संतुष्टि , भयानक पीड़ा का रूप ले रही है , मन में उठने वाले ये तरंगे, अब खाने लगी है उसको,  जिसको वो बीते वक्त वापस पाने की चाह उठने लगी है ,जिसको वह सुधार सकता था और जीना चाहता था। 
उम्र से पहले खुद को नौजवान और परिपूर्ण करने लगे है हम, 
सब सीमित है ये सोच, लुटना छोड़टूटने में लगे है हम ।

ज्यादा जानते है , लेकिन फिर भी बहुत कुछ बताना चाहते है सब ,
अभी तो तुम्हारी शुरूआत है , इन शब्दों का भी दोहराना चाहते है सब ..

तुमने क्या किया अबतक , कुछ भी नही अभी बहुत कुछ करना बाकी है,
तुम बहुत पीछे हो तुम्हारा आगे जाना बाकी है (बस इसके बीच में ही रख कर मसल दी जायेगी जिंदगी), आगे दौड़ने वाले को पीछे करना, ना जाने कब तुम्हारा मकसद बन जाएगा, दबे पांव जिन्दगी के ऊपर चल , तुमको घर के एक कमरे में आना होगा , और मिलना होगा खुद से , जिसके पास संघर्ष की एक मोटी सी गठरी होगी ( गठरी का आकार मानसिकता के अनुसार लगा सकते है ), जिसे उसने इक्ट्ठा किया है, बताने और जताने के लिए और जो तय करेगा , उसका भविष्य जो उसकी कल्पना मात्र,जिसे उसने चुराया है,इस फैले इन्टरनेट से ।

खुद  को बेहतर या बहुत बेहतर बनाने की जंग , क्या सच में हम आगे ले जा रही हैं, या फिर चक्कर लगवा रही है ,इस गोल दुनिया के..??

खैर...

उसने निश्चित नहीं, अनंत के विकल्प से जोड़ा हैं खुद को..
अनंत जिसका कोई विकल्प नहीं शायद "ज़िंदगी" भी नहीं..