दिल की गोद से निकल , अब ये शहर की सड़कों पर निकल पड़ा है ।
अरे जनाब, जहां नज़रों से नज़र मिलते ही नाप लिए जाते थे अक्सर उन नज़रों में बसे मयखाने को , आज इस इश्क़ के मयखाने में बची मय कितनी है यह भी भाप लिया जाता है ।
दिल में रखी बातों का एक वक़्त गुजरता था कभी जुबां पर आने में , आज जुबां बोल देती है झटपट अपनी बाते, और दिल में रखी बातो का एक वक़्त गुजर जाता है ।
दो शब्दो में जहां समझ जाते थे जो हर बात , आज इस इश्क़ को समझने के लिए , पूरी किताब लिखी जाती हैं।।
यूं तो अल्फाजों को जब मिलता था वक़्त शाम का