Saturday, April 25, 2020

क्या, बूढ़ा हो गया हूं मैं.... ?

जाड़ों में सर्दी अब ज्यादा लगने लगी है ,
मेरी पास की नज़र भी अब थकने लगी है 
मेरे सर के बालों का रंग भी बदलने लगा है 
ना जाने किसके प्यार में टूट कर बिखरने लगा है ।

अब मेरा चांद नग्न आंखो से साफ नज़र नहीं आता
यही पास में रखा उसका मकान नज़र नहीं आता 
हवाओं को मेरी नाक से अब ज्यदा टकराना पड़ता है 
इन सांसों को भी अब खुलकर इनसे गुजरना नहीं आता

बातो को अब बहुत सोच कर बोलने लगा हूं 
हर वजह पर इन लब्बों को अब चलाना नहीं आता 
वो पूछते है मुझसे आज भी मेरी हर फरमाइश 
पर इन दांतो को अब वो मसलना नहीं आता 

अब मुड़ मुड़ के उस देखने की आदत कम हो रही है 
गर्दन को हसीन मुद्दों से अब वो मिलना नहीं आता 
हर चोट सहन कर रखी है अपने मजबूत सीने पर 
पर अब इस सीने को , वो हर चोट सेहना नहीं आता 

यूं तो , मेरे हाथो ने अब दिमाग का साथ छोड़ दिया है 
तुम्हे कैसे बताऊं इन्होंने खुद को चलाना छोड़ दिया है 
हाथो की दस उंगलिओं को मै हर वक़्त गीन लेता हूं 
पर , मुझे मिले पानी का गिलास अक्सर छोड़ देता हूं 

दौड़कर अब सबको हराना नहीं आता 
हां अब मुझे तितली पकड़ना नहीं आता 
उसकी खिड़की से उतर अब मैं घर नहीं आता 
सच कहूं, पैरों को अब बिस्तर से उतरना नहीं आता 

राहों पर अब लोगो से मिलना हो नहीं पाता 
क्या करू मुझसे अब कहीं निकला नहीं जाता
वो सब कहने लगे है कि बूढ़ा हो गया हूं मैं 
तुम्हीं बताओ ,मुझे तो उनसे कुछ कहा नहीं जाता 

क्या , बूढ़ा हो गया हूं मैं ? 


Thursday, April 23, 2020

दोषी कौन हैं...

सुबह के सूरज के साथ ही , आरज़ू अपने घर के काम में जुट जाती है । और पास के गांव में रहने वाला राजू भी अपना बस्ता लीये स्कूल की ओर, दोस्तो के साथ निकल पड़ता है । आरज़ू और राजू का स्कूल एक ही है , और इस वर्ष दोनों का ही स्कूल में आखिरी बरस है । 

इसके बाद दोनों ही , विश्वविधालय का रुख करेंगे , ये सोच राजू और आरज़ू बहुत ही खुश है । 
आरज़ू अपने घर का कार्य खत्म कर के ही , स्कूल जाती है क्युकी उसके घर में कोई और नहीं है जो उसका काम में हाथ बटा सके । आरज़ू के मां की तबियत ठीक नहीं रहती और पिता जी सुबह होते ही , खेत की और निकल जाते है । 
आरज़ू अपने परिवार की एक अकेली लड़की है  , उसका रंग सांवला है ,और बहुत ही ज्यादा शर्मीली  है , लेकिन इसके साथ साथ वह बहुत मेहनती और पढ़ाई में भी अच्छी है । आरज़ू अपने निर्मल स्वभाव से और अच्छे विचारो से गांव की एक आदर्श लकड़ी है ।
जिसपर स्कूल और गांव वाले भी बहुत नाज़ करते है ।

अब स्कूल का आखिरी बरस है , तो सभी विद्यार्थी काफी मेहनत से अपनी पढ़ाई कर रहे है , और स्कूल के बच्चो की लगन को देखते हुए , स्कूल के प्रधानाचार्य ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया है , जिसको शहर का एक नामी कॉलेज आयोजित करेगा ।  और प्रतियोगिता जीतने वाले , विद्यार्थी को उस नामी कॉलेज में एडमिश मिल जाएगा और इसके साथ साथ कॉलेज उसके पूरे शिक्षा पर खर्च भी करेगा ।

इस प्रतियोगता के लिए स्कूल विद्यार्थियों को एक महीने का वक्त देता है तैयारी के लिए। 
राजू जोकि प्रधानाचार्य का बेटा है , पढ़ाई में अच्छा है लेकिन आरज़ू की अपेक्षा उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं है । जोकि प्रधानाचार्य जी को पसंद नहीं है।
राजू के पिता उसको इस प्रतियगिता का महत्व समझाते है और राजू को मेहनत करके ये प्रतियोगिता जीतने के लिए कहते है ।

इधर आरज़ू को स्कूल के अध्यापक समझते है और इस अवसर को जीतने के लिए प्रेरित करते है । 
आरज़ू भी अपनी पूरी मेहनत में लग जाती है और पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने लगती है ।
और राजू के साथ साथ स्कूल के सभी विद्यार्थी मेहनत करने में लग जाते है । आखिर उस नाम चीन कॉलेज में सभी को एडमिशन लेना था । 

प्रतियोगिता के सात दिन पहले , कॉलेज अपने अध्यापकों की एक टीम इस प्रतियोगीता की जांच के लिए भेजता है । जिसमे एक अध्यापक रमेश, जोकि काफी युवा हैं और खूबसूरत भी । 

स्कूल में विद्यार्थियों को चार भाग में बांट दिया जाता है । 
जिसमे से एक भाग , अध्यापक रमेश को मिलता है , और अध्यापक रमेश के भाग में आरज़ू और राजू भी शामिल है । विद्यर्थियों को चार भाग में बाटने के बाद , चार भागों में बटे विद्यार्थियों का , Practice Test  लिया जाता है । जोकि उनकी तैयारी और बुद्धि को जानने के लिए किया जाता है । 

इस Practice Test में सिर्फ आरज़ू ही सारे प्रश्नों का सही सही उत्तर देती है । जबकि राजू अपने पिता के दवाब में आकर अच्छा प्रदर्शन नहीं  देता है । 

आरज़ू का Test Paper , Check करने के बाद , अध्यापक रमेश , आरज़ू से बहुत प्रभावित हो जाते है , और अन्य विद्यार्थियों से आरज़ू के बारे में पूछने लगते है । 
इधर राजू का Practice Test में बेकार परिणाम देखने के बाद , उसके पिता उसपर बहुत नाराज़ होते है और पढ़ाई का बहुत ज्यादा दबाव बनाते है । 

अध्यापक रमेश जो की युवा थे और सुन्दर भी तो स्कूल की लड़कियां उनको पसंद करने लगी थी , और उनका आरज़ू के बारे में जानकारी लेना , उसके बारे में पूछना ये  सब स्कूल की लड़कियों ने अलग तरीके के लिया था और आरज़ू को कुछ इस तरह से बताया , मानो अध्यापक रमेश ,आरज़ू की चाहने लगे है । 

अब क्युकी अध्यापक रमेश ज्यादा उमर के नहीं है और बेहद खूबसूरत भी है , तो आरज़ू को ये बाते सुनकर अच्छा लगता है और आरज़ू को लगने लगता है कि सच में अध्यापक रमेश उसको चाहने लगे है । और आरज़ू जाने अंजाने अध्यापक रमेश को चाहने लगती है , और ज्याातर समय अध्यापक रमेश के बारे में ही सोचने लगती है ।

इस वजह से आरज़ू का ध्यान ,पढ़ाई से हट जाता है और वह काल्पनिक दुनिया में जीने लगती है ।
इधर राजू को पढ़ाई में ध्यान लगाना मुश्किल हो रहा है क्युकी उसके दिमाग़ में उसके पिता के तीखे स्वर गुजते रहते थे ।

प्रतियोगिता का दिन ...

आज आरज़ू के पिताजी खेत पर नहीं गए है , क्युकी आज वह अपनी बेटी के साथ स्कूल आए है , और रास्ते में उसको अपने सपनों के बारे में बताते हुए आए है , जो आरज़ू के पिता ने आरज़ू के साथ देखे है । 
क्युकी वो जानते है कि अगर आरज़ू का एडमिशन इस नामी कॉलेज में हो जाएगा तो उनके और आरज़ू के सारे सपने पूरे हो जाएंगे ।

इधर राजू भी ,अपना बस्ता उठाए स्कूल की तरफ निकल लिया है , लेकिन आज वह अपने दोस्तो के साथ स्कूल नहीं आ रहा है । राजू स्कूल के दरवाजे तक आकर लौट जाता है , क्युकी उसको पता था कि वह यह प्रतियगिता जीत नहीं पाएगा और उसके पिता जी उस पर फिर नाराज़ होंगे । राजू खुद से हार मान चुका था । और इसी वजह से वह लौटते वक़्त अपने घर का पता भी भूल गया था । 

स्कूल में आरज़ू के पिता बहुत उम्मीद से , स्कूल के गेट पर आपनी बेटी आरज़ू का इंतज़ार कर रहे थे कि वह अपने बेटी से पूछ सके कि उसका इम्तिहान कैसा गया । 
उधर आरज़ू प्रतियोगिता भवन में बैठती है ,और प्रतियोगिता भवन में , अध्यापक रमेश की जगह अन्य अध्यापक को देख , आरज़ू निराश होती है , और अध्यापक रमेश के ना आने की वजह के बारे में सोचने लगती है । 

प्रतियोगिता आरंभ होती है , आरज़ू अपना पूरा ध्यान प्रतियोगिता में नहीं दे पाती और उससे प्रतियोगिता अधूरी छूट जाती है । जिसका आरज़ू को बहुत पछतावा होता है । और वह सोचती रहती है अब कैसे सबसे नज़रे मिलाउंगी यहीं सोचते हुए आरज़ू जैसे ही दरवाजे की तरफ, खड़े अपने पिता को देखती है तो अपनी करनी पर पचताती है ,और खुद को पिता के संपनो का दोषी मान , दौड़कर स्कूल की छत पर चढ , कूद जाती है । 

राजू के पिता भी श्याम को घर निराश मन से घर जाते है , और काफी गुस्से में घर का दरवाजा खटखटाते है । 
राजू की मां दरवाजा खोलती है , और तुरंत राजू के बारे में पूछती है । 
पिता के चहरे से गुस्से का भाव उड़ जाता है । और बैचैन आंखो से राजू को तलाशता है । सारी कोशिश कर , राजू का पिता हार जाता है और घर के कौने में बैठ खुद पर रोता है । 
पर घर का चिराग राजू फिर कभी वापस लौट कर घर नहीं आता है ।



Sunday, April 5, 2020

तालाश या पछतावा

यकीन मानिए आपका और हमारा दिल , कहीं ना कहीं किसी ना किसी , एक तालाश में रहता है । 
तालाश जैसे , रात को दिन की ,  रास्तों को मंज़िल की  , आपको हमारी और हमको आपकी ।ऐसे ही ना जाने कितने लोगो की तालाश जारी है , हर शहर , हर गांव और हर नगर में । 
पर  ऐसे में " एक तालाश " जो अक्सर हम आपको हर उम्र में रहती है , वह है प्यार की तालाश ।
लेकिन Alter Ishq की यह कहानी, प्यार को ढूंढ़ने की नहीं है , बल्कि उस प्यार को ढूंढने की है जो गुम हो चुकी है । 
तो आयिए उस गुमशदा प्यार की तालाश करते है । Alter Ishq की अपनी इस कहानी में .....

सांझ की दोपहरी में , एक युवक छत की गोद में बैठ सूरज को उसके घर जाते देख रहा था । 
तभी अचानक गली में , अनजाने शोर ने आहट सुनाई , और पास वाले घर में , राजू की किसी ने कर दी पिटाई । 
राजू की हालत देख , गली के ताऊ जी से रहा ना गया , लाठी उठाए राजू के घर तक चले आए और राजू को दो चार बाते सुनाई । ताऊ जी की आवाज़ बहुत भारी है तो गली के सारे लोग इकट्ठा हो गए । थोड़ी देर बाद ताई जी ने भी आवाज़ लगी और ताऊ जी को घर में बुलाया , बोली बेटी , शादी के बाद पहली बार घर आ रही है और तुम्हारी पंचायत खत्म नहीं हो रही ।
ताई जी की आवाज़ सुनते ही ताऊ जी , घर वापस चले गए । अब राजू का क्या हुआ क्या नहीं , कहनी इस विषय पर नहीं है , असल में कहानी के महत्पूर्ण किरदार ,वह छत की गोद में बैठा युवक है , जो सूरज को डूबते हुए देख रहा है , और वह लड़की है , जो शादी के बाद  पहली बार अपने घर आ रही है । 
चांद के निकलते ही , वह लड़की अपने पति के साथ ताई के द्वार पर आ जाती है और ताई उनको घर के भीतर ले जाती है । और थोड़ी सी दूर , छत पर बैठा वह युवक , ये सब बड़े गौर से देख रहा था । आंखे मानो उसी के आने का इंतजार कर रही थी ।  
समय का पहिया थोड़ा गुजरता है , तो सुबह उस लड़की का चेहरा , उसको अपनी छत से फिर से मुस्कुराता हुआ दिखता है ।  नज़रे मिलती नहीं है अभी तक , बस उम्मीद इतनी है उस युवक की ,  की जो तालाश वह आज तक कर रहा है ,  क्या वो भी वही तालाश कर रही है ।
इसी सोच में सुबह का पहर बीतता है , और शाम में बदलता है ।  
शाम को वह लकड़ी अपने पति के साथ अपने छत पर आती है , और अपनी नज़रे इधर उधर घूमती है , और अपने आस पास के बारे में , पति को बताती हैं , इसी बीच उसकी , आंखे आकर ठहर जाती है , उस छत पर जहां से वह युवक , निहार रहा होता है उसे ।
मुलाकात का सिलसिला आंखो से शुरू होता है , और खामोश मुख के साथ , बहुत सी बातों आपस में बयां होती है ।  इसी बीच दोनों की आंखे थोड़ी नम होती है , के तभी लड़की के पति की आवाज , उस लड़की के कान तक आती है , और उसका ध्यान उस लड़के से हटाती है ।
उस रात लडको को , चांद आसमा में मायूस नज़र आता है , उस मायूस रात के बीच , उस लड़की का फोन किसी अनजान नंबर से बजता है ।
फोन पर उस लड़की की आवाज़ सुनते ही , वह युवक भावुक हो जाता है , क्या कहे- नहीं , उसको कुछ समझ नहीं आता है । बातो का सिलसिला आगे बढ़ता है , तो युवक अपनी हर एक बात उस लड़की से कहता है , जो उस युवक को उस लड़की से करनी थी । 
 यह वह बाते थी जिसके लिए , वो लड़की उस युवक को आज तक दोषी समझती थी ।
युवक की बातो में , वह लड़की उसकी तड़प महसूस कर सकती थी , युवक ने जितनी भी बाते कहीं , वह सारी सच्ची थी । उसकी बातो सुन  वह लड़की पूरी रात सिसकती है । और सुबह सूरज की पहली किरण के साथ उसके घर , उससे मिलने निकलती है । 
घर का दरवाजा खुलता है ,और युवक की मां उस लड़की के सामने होती है , वह लड़की बड़ी उत्सुकता से , उस युवक से मिलने का ज़िक्र , उसकी मां से करती है । इतना सुनते ही उसकी मां उदास सी हो जाती है और कहती है , जो है ही नहीं उससे मिलोगी कैसे । बेटी अपने घर जाओ,,, और दरवाजा बंद कर घर के भीतर चली जाती है ।
लड़की को समझ नहीं आता , वह मायूस अपने घर तक आती  है , और उसका नम्बर कई बार लगाती है ,जीस नंबर से उसको कल रात फोन आया था । लेकिन उसका नंबर लगता नहीं है ।  
उसको इतना परेशान देख , ताई उसके पास आती है , और उससे, उसकी परेशानी की वजह पुछती है , तो वह लड़की सारी बात , ताई से हैरानी भरे नजरो से बताती है ।
इतना सुनते ही ताई निराश हो जाती है , और अपने सर को उस लड़की के आगे झुकते हुए , उस युवक को सच्चाई बताती है ।

ताई लड़की को बताते हुए कहती है , उस युवक की मौत आज से 8 महीने पहले , तेरी शादी के अगली शाम ही , छत से गिरने से हो गई थी । हमने समाज और अपनी आन के लिए तुझसे झूठी बाते कही और उस युवक को परिवार के नाम पर बहुत परेशान किया ।
रिश्तों और अपनों की जाल में वह ऐसा उलझा की आज तक निकल नहीं पाया। 
इतना सुनते ही , वह छत पर दौड़ कर जाती है , और डूबते सूरज के साथ , उस युवक की परछाई भी ढलती चली जाती है । और रह जाता है तो बस , " काला अंधेरा " । 
इसी अंधेरे में वह लड़की, छत की गोद में खड़ी खुद को निशब्द पाती है ।