Tuesday, March 31, 2020

गांव जाना अभी बाकी है ....

एक गांव है मेरा , जो यादों में बस्ता है।
 जहां सुबह का सूरज खुले आम मैदान में निकलता है । साथ ही साथ बाबूजी की थपकी पीठ पर भी लगती है । और 
दादाजी की लाठी ढूंढ़ने में वक़्त भी तो लगता है , 
मिल जाने पर , "दौड़" उनके पास ले आते है लाठी । लाठी देने के बाद , उनकी डांट खानी अभी बाकी है,
 जी हां दादाजी का प्यार अभी बाकी है । 

जब लाठी पकड़े दादाजी निकल जाते थे सबसे मिलने , हमभी दबे पांव उनके पीछे पीछे जाते थे । 
तब घर के द्वार पर बैठी दादीजी, दादाजी को आवाज लगाती है।  
दादाजी का मुड़कर गुस्सा करना बाकी है , जी हां दादाजी की लाठी वाली डांट अभी बाकी है ।

वहीं थोड़ी दूर गांव के मुखिया का घर है , बाबूजी के साथ उसका ना जाने उसका क्या मत है , दादाजी के जाते ही घर पर आ जाते है और साथ में बैठ चाय के साथ पकोड़े भी खाते है । 
 गांव के मुखिया की, बातो की पोटली अभी बाकी है , जी हां गांव के हर घर की कहानी अभी बाकी है ।

तभी पड़ोस के चाचाजी , अपनी गाय लिए हमारे द्वार से गुजरते है , और हमें देख द्वार पर , वो थोड़ी देर ठहरते है । 
हमें देख ना जाने क्यों क्रोध उन्हें आ जाता है और वही से ऊचे स्वर में ही बुलाते है । 
असल में चाचा जी का ज्ञान अभी बाकी है , जी हां चाचाजी की चाय भी अभी बाकी है ।

तभी दादाजी का बुलावा आता है , गांव का राजू अपने घर जाते जाते , दादीजी को बताता है , दादाजी चुने और सुरती का डिब्बा भूल गए है । 
दादीजी इतना सुनते ही राजू को दो चार सुनती है , फिर हमपर अपनी नज़रे गड़ाती है । 
दादाजी के डिब्बे को ढूंढ़ना बाकी है , जी हां हमारा चौराहे तक दौड़ना अभी बाकी है ।

चौराहे पर दादाजी के पास जाते है , पर दादाजी के साथ बैठी एक पूरी टोली है । दादाजी कुछ बात सबसे हमारे बारे में बताते है और हम सबकुछ समझते है । 
अपने से बड़ों का सम्मान अभी बाकी है , जी हां खेत खलिहान अभी बाकी है ।

दादाजी खेतो में लगे फसलों को दिखाते है , और बाबूजी के आने से पहले , हमसे फ़सलो में पानी चलवाते है । 
सच है , खेत में फसले खिलखिलाती है  और सही वक़्त पर पानी पा कर और मुस्कुराती है । 
बाबूजी का खेत में आना बाकी है , जी हां ट्यूबल के पानी में हमारा नहाना अभी बाकी है ।

नहाने के बाद हम खेत में टहलते है , तभी बाबूजी आवाज देते हैं, मां ने तुम्हारी खाने के लिए बुलाया है ।
मां की रोटी आज भी चूल्हे पर पकती है । हमे खिलाने के बाद ही वो खाना चखती है । 
खाने के बाद , गांव के मुंडेर तक जाकर आना बाकी है , जी हां दोपहर की वो मीठी नींद अभी बाकी है। 

दोपहर की नींद शाम में बदलती है , और शाम की चाय जैसे ही मां , नमकीन के साथ रखती है । तभी कल्लू चाचा के लडके और गांव के दोस्त द्वार से चिल्लाते है , खेलने नहीं चलोगे क्या। इतना सुनते ही चाय को प्याली को जल्दी से पी , नमकीन मुठ्ठी में लिए , द्वार पर आ जाते है । 
अभी राजू नहीं आया है , उसको बुलाना बाकी है , जी हां हमारा शाम का खेलना बाकी है ।

शाम के खेल के बाद ,
पूरा गांव घूमने के बाद , 
मुखिया के बगीचे से फल तोड़ने के बाद ,
नदी किनारे बैठने के बाद , जब घर थोड़ा देर से आते है । और बाज़ार से दादाजी की दवा लेना भूल जाते है ।
तब हम दबे पांव , घर के पीछे के द्वार से घर में आ जाते  है ।
 दादाजी का द्वार से घर में आना बाकी है , जी हां रात की पढ़ाई हमारी बाकी है ।

पढ़ते वक़्त सब आस पास ही रहते है , दादाजी और दादीजी थोड़ा ज्यादा पास होते है , और सब प्यार से हमे निहार रहे होते है । इसके साथ साथ पूरे गांव की बाते भी होती है और ये सारी बाते हमारे से होकर गुजरती है ।
बातो में सबके लिए प्यार भी बेशुमार होता है , और हमको तो रात के खाने का इंतज़ार होता है । 

इतने में रिमझिम सब्जी का एक प्याला लाती है , जो चाची भिजवाती है ।
 रात के भोजन के बाद बिस्तर की लड़ाई , अब तो हर दिन का रोना है । इधर उधर करने पर उठ जाता , बिछोना है। 
इसके बाद दादीजी की बाते अभी बाकी है , जी हां रात की वो खूबसूरत नींद अभी बाकी है । 

रात की नींद की नींद लेने के बाद , सुबह , समय पर उठना उठाना है , दिनभर के काम के बाद , गांव फोन भी तो लगाना है ।
 क्या करे , शहर का काम भी बहुत बाकी है , जी हां , हमारा गांव जाना अभी बाकी है ।

 






 

Thursday, March 26, 2020

कैद ज़िंदगी और ये वीराना ...,

किसी को ये कहने की जरूरत नहीं कि ,
आज स्कूल साथ चलते है , ऑफिस से जल्दी निकलेंगे ,
गाड़ी ज़रा देख कर चला, कैसे कैसे लोग है , 
दिन खराब हो गया, ये बाज़ार सबसे सस्ता है, 
कपड़ों का नया स्टॉक आया है, रिक्शे उस चौक से मिलेंगे ,
Ola- Uber बुक कर देता हूं, दोस्त के घर चलते है ,
पार्टी करते है और ना जाने क्या क्या....

या यूं कहो , 
हमें जीना है , तो मिलने की जरूरत नहीं ।
कुछ कहने , करने की जरूरत नहीं ।

ख्याल जैसे भी हो, अब खुद को थाम लेना ।
मन अगर घर से निकलने का हो, तो मन को मार लेना ।।

क्युकिं इन दिनों......
कुछ इन्हीं "हां" और "ना" के बीच , ज़िंदगी तालाश रही है  खुद की ज़िन्दगी । जिसमें उलझी सी है हमारी "सुबह" ,जो हर "शाम" सहम सी जाती है । 
अब तो बचपन में सीखी 100 तक गिनती भी , ना जाने क्यों डराती है । 
बंद पिंजड़े के पंछी भी , बहुत कुछ बोल जाते है ।
और मंजिलों के बीच बीछे ये काले चादर , विरानो में गीड गिड़ाते है ।

यह कैसा , अजीब सा माहौल बना है ,  इर्द गिर्द हमारे  , जहां शोर से ज्यादा खामोशी डराने लगी है ।

आलम यह है इस खामोशी का , कि
गलियों ने खिलखिलाना , सड़कों ने बुलाना और गाड़ियों ने घर जाना छोड़ दिया है । 
बच्चो की हंसी सुकून देती थी जिन्हें , सुना है उन बच्चो ने मुस्कुराना छोड़ दिया है ।
डर और खामोशी से फैले इस वीराने की वजह से, लोगो ने अब, जाना छोड़ दिया है ।
ये कैसी जंग है , कुदरत की इंसान से , जहां इंसान ने इंसान को छोड़ दिया है ।

जहां , शून्य है सब , लेकिन करोड़ों की गिनती अभी बाकी है । 
घूट रहे है सब , सांस लेना अभी बाकी है । 
थक गए है सब , दौड़ना अभी बाकी है ।
यह कैसा इश्क़ है फैला है ,  हमारे दर्मया जहां सब कुछ Alter है ,लेकिन , Confirm करना अभी बाकी है ।

अब तो , घरों में छिपी ज़िंदगी निहारती है खुद को , इन खिड़की दरवाजों से, पर ... इस पसरे पड़े वीराने को देख सहम जाती है ,  बोलती कुछ नहीं इस वीराने से , बस इसके लौट जाने के ख्याल से , खुद को कैद कर,  ये ज़िन्दगी मुस्कुराती और फिर शांत हो जाती है । 











Saturday, March 21, 2020

इश्क़ का हर पन्ना छिपा सा है ......

यूं तो हर फिज़ाओं में हमने इश्क़ को देखा है , कभी हसते , कभी नाचते , कभी अटखेलियां करते देखा है । 
ऐसी अनेक हरकत करते दिख जाता है , यह इश्क़ ।
 जो कभी हंसाता है , गुदगुदाता है , सताता है तो कभी कभी मायूस भी कर जाता है । 
और इस इश्क़ को  , देखना , पाना , और महसूस करना , हम और आप , एक ना एक बार जरूर चाहते है । 
और क्यों ना चाहे , आखिर ये इश्क़ , इतना खूबसूरत जो है । 
अब इस इश्क़ के रूप भी तो बहुत है ..,
 खूबसरत होने के साथ साथ , ये ज़िद्दी भी तो बहुत है , मासूम भी बहुत है , और साथ के साथ हमारे लिए खास भी तो बहुत है । 
ये इश्क़ है जनाब , बीना हम आपके , फैल भी तो नहीं सकता , सुन भी नहीं सकता और बोल भी तो नहीं सकता , ओर तो ओर हर उम्र में होता है , हर शख्स को होता है  ।
ये इश्क़ , छोटा - बड़ा , अमीर - गरीब , गांव - शहर , देश - विदेश , उच - नीच , इच्छा - सम्मान नहीं देखता ।
यह तो हर जगह , हर रंग में चढ़ता है , फूलों की तरह महकता है , हर वक़्त , कोई ना कोई गीत गुनगुनाता है ।
यह इश्क़ है साहब हम और आप को मिलकर रहना और जीना सिखाता है ।
यह इश्क़ वकालत भी खुद करता है , और फैसले भी खुद सुनता है । 

 लेकिन इन दिनों बागो से , वो दिलकश , मन को जीत लेने वाले , हवाओं में ख़ुशबू बिखेरने वाले , खूबसूरत फूल गायब है । जो इस इश्क़ का ख्याल रखते है ।
सुना है , इन फूलों को परेशान करने , दुनिया के हर बाग़ में , एक चोर आया है , जो इन फूलों को इश्क़ करने नहीं देना चाहता , इनको खुलकर महकना और खिलखिलाकर हंसते , देखना नहीं चाहता । 
इसीलिए , बागो के हर  , बागवान ने ,...., 
अपने - अपने बागो के हर फूल को छिपाना और उनपर निगरानी रखनी शुरू कर दी है । ताकि, उस चोर से अपने बाग़ के सभी खूबसरत फूलो को बचा सके , जिसे वह चोर नुकसान पहुंचाना चाहता है । 
क्यूंकि हर बागबान जानता , इन फूलों से फैलने वाले इश्क़ का महत्व , रंगो का महत्त्व , खुशबू का महत्व , और  खुद का इन खूबसरत फूलो के बिना , रहने का महत्व ।
वह जानता है , हर फूलो में शामिल , उसके पत्ते , डाली , मिट्टी और पानी का महत्व ।  
वह बागवान समझता है अपनी बैचैनी में , छिपी हैरानियो का महत्व  । या यूं कहो वह समझता है फिज़ाओं में इश्क़ के , ना होने का महत्व ।
वह सेहमा हुआ सा है ,  लेकिन अपने जिक्र में बेतहाशा फिक्र करता हुआ , नज़र आता है ।  
वह जानता है ........
इन दिनों इश्क़ का हर पन्ना , शांत है । जिस इश्क़ के पन्ने को पढ़कर , सब , सब कुछ बोल दिया करते थे  , आज उनके मुंह पर पट्टी सी लगी है । 
आंखे कहना और हाथ रोकना चाहते है बहुत , आंखो पर पहरा और हाथो पर सख्ती बड़ी है । 
अब यह इश्क़ बोलता नहीं , चलता नहीं , हंसता नहीं  पहले जीतना । शांत अकेले में बैठकर, बस यही चाहता है  कि वह चोर , बागो के फूलो को ना चुराए , ना नुकसान पहुंचाए और हमेशा के लिए उसके बाग को छोड़कर चला जाए । 
क्यूंकि ...,जिस इश्क़ के मनमानियों के शोर थे , फिज़ाओं में , आज वह मान सा गया है। 
उसके खिलखिलाते चहरो ने भी , गंभीरता को समझ , उसकी अंजानी सी सिलवटों को खुदमें समेट सा लिया है । 
जीस इश्क़ के फैसले के बाद सुनवाइयों की जरूरत नहीं हुआ करती थी , आज उस इश्क़ ने अपनी , परछाईं को भी चादर में ओढ़ सा लिया है ।
क्यूंकि ये इश्क़ रहना चाहता है , जीना चाहता है हमेशा... हम और आप में ।
यह जानता है अपने ज़िंदगी का हर वो हसीन लम्हा , जिसके लिए वह छिप रहा है । 
यह आना चाहता है , 
दुबारा खिलखिलाकर हसना चाहता है , 
उस खोफ़ के चादर को जलाकर , जिसने उसे छिपा लिया है खुद में  । 
बस अपने बाग को , जिसकी खूबसूरती उसके हसीन  फूलो से है उसको,  उस चोर से बचना है ।
फिर , यह इश्क़ भी  मुस्कुराते हुए लौट आएगा ।